साक्षात्कार:
समाजिक सरोकार को दर्शाती राजकपूर चितेरा की पेंटिग
चित्रण कला के माध्यम से आगे बढ़ने को प्रयत्नशील' राजकपूर चितेरा’ कला के कई आयाम होते हैं. कभी कला जीवनयापन का माध्यम बनती है, तो कभी इंसान अपनी आत्मा को संतुष्ट करने के लिए कला को ही आधार बनाता है. समाज के उत्थान में भी कला महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हर व्यक्ति आज कला से किसी न किसी रूप से जुड़ना चाहता है. कुछ लोग कला का उपयोग मनोरंजन के लिए करते हैं, तो कुछ कला को हथियार बनाकर सामाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार करते हैं.
साक्षात्कार की इस कड़ी में आपका परिचय एक ऐसे ही युवा चित्रकार से करने जा रहा है जिसने अपने क्रिएटिव चित्रकारी से भारत के भविष्य की जो परिकल्पना की है वो अकल्पनीय है. इनका मानना है कि पेंटिंग सिर्फ घर में सजावट के काम नहीं आती बल्कि चित्रकला से चित्रकार वैसे ज्वलंत मुद्दों को प्रदर्शित करते हैं जो देश और समाज को प्रेरित करता है।
प्रस्तुत है अपनी अद्भुत चित्रकला के माध्यम से भारत के भविष्य का अविस्मरणीय चित्रण कर कला क्ष्रेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले के सुलेमपुर परसावां निवासी 29 वर्षीय चित्रकार राजकपूर चितेरा चित्रकला के क्षेत्र में राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प हैं । तमाम कठिनाइयों के बावजूद राजकपूर चितेरा ने अपने चित्रकला के जूनून को बरकरार रखा है. सरकार द्वारा कोई खास प्रोत्साहन नहीं मिलने के बावजूद भी राजकपूर अपने आत्मबल से चित्रकला में लगातार क्रिएशन करते आ रहे है ।
राजकपूर चितेरा को बचपन से ही अपनी भावनाओं को चित्रों में उतारने का शौक था ।जब राजकपूर तीसरी कक्षा में थे कला के प्रति रूचि होने के कारण वे अपने घर के दरवाजे के दोनों पल्लों एक पर पिता की तो दूसरे पल्ले पर माता की आदमकद छवि चित्र जली हुई लकड़ी कोयले से बनायीं थी ।जहा से राजकपूर को कला के प्रति काफी प्रोत्साहन मिलने लगा । राजकपूर ने बताया कि घर में चित्रकला के क्षेत्र में दूर- दूर तक कोई नाता नहीं था । पिता बाबुराम गुप्ता एक साधारण व्यपारी हैं । तीन भाइयों में राजकपूर मझले हैं । मेरे परिवार के लोगों ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है. मेरे पिता और मेरे बड़े भाई ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया. चित्रकला की प्रदर्शनी लगाने में भाई और दोस्तों ने काफी आर्थिक मदद की । गांव से हाईस्कूल करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिये संगम नगरी इलाहाबाद आ गये ।चित्रकला विषय से परास्नातक करने के उपरांत इलाहाबाद विश्व्विद्यालय में चित्रकला विभाग के प्रोफेसर डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल जी के सानिध्य में रहकर कला को सवांरने लगा ।और कुछ ही समय में इस युवा चित्रकार ने अपनी कला के जरिये अलग पहचान बना ली । राजकपूर को संगीत गायन में भी रूचि हैं और संगीत की बारीकियां पडरौना घराने के डॉ. पांडेय ओम प्रकाश मालिक ने से सीखी । उनकी पेंटिंग की अदभुत चित्रकारी से प्रभावित होकर उनके संगीत के गुरु श्री मालिक जी सन् 2007 में राजकपूर को चितेरा नाम दिया । वही नाम इस युवा कलाकार की पहचान बन गई । तब से चितेरा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
2006 में महात्मा गांधी जी 140 वीं जयंती पर 140 फुट पेंटिंग मात्र 6 घंटे में बनाई थी । 2011 में किर्केट की दुनिया के भगवान कहे जाने वाले महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के 38 वें जन्मदिन के शुभ अवसर राजकपूर चितेरा ने बिना अन्न ग्रहण किये लगातार 38 घंटे कड़ी मेहनत के बाद 1500 फिट लम्बी पेंटिंग बनाकर सचिन को नायाब तोहफा दे चुके हैं ।इसी क्रम मे चितेरा द्वारा बनायीं 2013 में दिल्ली गैंग रेप पर कृति विश्व की प्रसिद्ध टाइम मैग्ज़ीन ( अमेरिका ) ने सम्मान देते हुए जगह दिया । इस उपलब्धि पर राजकपूर चितेरा ने बताया कि कोई भी कला शुरुआत में सपने की तरह दिखती है, पर कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास से हर कला को आत्मसात किया जा सकता हैं । हर काम को जूनून से करना चाहिए । आप सैंड आर्टिस्ट के रूप में भी जाने जाते हैं । राजकपूर हमेशा समाज को लेकर अपनी कृति को रूप देना चाहते हैं । इलाहाबाद के संगम तट पर सैकड़ो रेत से बनी हुई कलाकृति की प्रदर्शन कर चुके हैं । जब भी कोई दिवस हो या को शुभ अवसर अथवा समाज से जुड़ीं जागरूकता कार्यक्रम हो तो आप हमेशा अग्रसर रहते हैं । देश के महान स्वतंत्रता सेनानी से लेकर आज के महान विभूतियों को संगम के किनारे रेत के द्वारा बना चुके हैं । पंडित जवाहरलाल नेहरू ,नेल्सन मंडेला , नरेंद्र मोदी , अमिताभ बच्चन , लता जी , अब्दुल कलाम जी सहित अनेको सैंड कृति बना चुके हैं । अगर पेंटिंग की बात की जाय तो उसमे आपका योगदान विशेष रहा हैं । बर्डफ्लू से कम नही जीवन की पीड़ा , वर्निंग ऑफ यूपी , शहीद , कॉन्फिडेन्स , अब्दुल कलाम, सहित अनेको अनेक बनायी हैं । राजकपूर के कलाकृतियों को देश के विभिन्न समाचार पत्रों , इलेक्ट्रानिक न्यूज़ चैनलो सहित एफ एम चैनलो पर समय-समय पर प्रकाशित और प्रसारित होता रहता हैं ।
उनका मानना है कि संगीत में एक चमत्कारिक शक्ति होती है। गांव के मेलों से लेकर नदी के घाट और पशु पक्षियों तक में एक लय व ताल होती है। इसके जरिए रंगों में जीवंतता आती है। पेटिंग और कुछ नहीं बल्कि कविता का एक ऐसा वैकल्पिक माध्यम हैं जिसके जरिए आप अपने विचारों को कैनवास पर चित्रित कर सकते हैं। भावना से प्रेरित होकर उन्होंने जीवन के विभिनन पहलुओं जिनमें पर्यावरणीय से लेकर सामाजिक समरसता तक शामिल है उन्हें उकेरा है। हम अपने जीवन को संगीत से अलग नहीं कर सकते। शायद यही वजह है कि उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित रविशंकर, हरिप्रसाद चौरसिया के पोट्रेट बनाकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित की है।
चितेरा को अब तक इलाहाबाद , लखनऊ , दिल्ली , चित्रकूट , बनारस , ललित कला अकादमी , अहमदाबाद , चंडीगढ़ सहित अनेको शहरों में स्वयं के चित्रों की प्रदर्शनी व देश की विभिन्न प्रदर्शनियों में हिस्सा ले चुके हैं । इसके लिए राजकपूर चितेरा राष्टीय स्तर के अवार्ड अथवा अनेक संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया जा चुका हैं । आज भी वे निरंतर कार्य में लगे हैं । एक अच्छा चित्रकार वही माना जाता है जो कि हमेशा एक जैसी शैली अपनाए रखता है। समाज में बढ़ती जागरुकता के कारण अब गिलहरी के बालों से तैयार किए जाने वाला ब्रश भी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। इस सबके बावजूद समाज का एक बड़ा वर्ग अब पेंटिग में निवेश करने लगा है। इन्हें भी बहुमूल्य रत्नों की तरह खरीदा जाने लगा है। बड़े घराने व कारपोरेट समूह इसमें विशेष रुचि ले रहे हैं। उनका मानना है कि जब समाज में असहिष्णुता का माहौल बढ़ रहा है तो सामाजिक समरसता लाने में कला बहुत अहम भूमिका अदा कर सकती है।कलाकार की सोच सार्थक हो मेरी ओर से यही शुभकामनाएं हैं ।
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